Quantcast
Channel: Family Tips In Hindi , Women issues, Pregnancy Tips, baby care tips - फैमिली टिप्स, प्रेगनेंसी टिप्स | Navbharat Times

प्रेग्नेंसी में ब्लीडिंग और स्पॉटिंग हो तो घबराएं नहीं, हो सकती हैं ये बातें

$
0
0

मां बनना किसी भी औरत के लिए दुनिया के सबसे बेस्ट एक्सपीरियंस में से एक होता है। अपने बच्चे को 9 महीने तक गर्भ में पालना कोई आसान काम नहीं है। इस दौरान शरीर के अंदर कई बदलाव होते हैं और कई तरह के अच्छे और बुरे हर तरह के अनुभव का भी सामना करना पड़ता है। लेकिन अगर आप प्रेग्नेंट हैं और हल्की सी भी ब्लीडिंग या स्पॉटिंग नजर आए तो किसी का भी परेशान और पैनिक होना लाजिमी है। हालांकि इस स्पॉटिंग का मतलब जरूरी नहीं कि आपकी प्रेग्नेंसी में कुछ गलत हो गया है। ऐसी कई महिलाएं होती हैं जिन्हें पूरी प्रेग्नेंसी के दौरान हल्की ब्लीडिंग या स्पॉटिंग होती रहती है बावजूद इसके वे एक हेल्दी बच्चे को जन्म देती हैं।

प्रेग्नेंसी के 12 हफ्तों तक 25% महिलाओं को होती है स्पॉटिंग
डॉक्टर्स और गाइनैकॉलजिस्ट्स की मानें तो प्रेग्नेंसी के पहले ट्राइमेस्टर यानी शुरुआती 3 महीने में हल्की ब्लीडिंग या स्पॉटिंग होना बेहद कॉमन और नॉर्मल सी बात है। करीब 25 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को प्रेग्नेंसी के 12 हफ्तों तक हल्की ब्लीडिंग या स्पॉटिंग का अनुभव होता है। 2010 की एक स्टडी की मानें तो प्रेग्नेंसी के छठे और सातवें हफ्ते में बेहद कॉमन बाता है। लेकिन होने वाली मांएं अक्सर ऐसी चीजें देखकर घबरा जाती हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली स्पॉटिंग का रंग और फ्लो दोनों ही मेन्स्ट्रुअल पीरियड के दौरान होने वाली ब्लीडिंग से हल्का होता है या फिर कई बार डार्क ब्राउन कलर का भी हो सकता है और महज एक-दो ड्रॉप खून ही नजर आता है।

प्रेग्नेंसी में स्पॉटिंग की वजहें
गर्भावस्था के दौरान हल्की ब्लीडिंग और स्पॉटिंग दिखने की कई वजहें हो सकती हैं-
- जब भ्रूण होता है इम्प्लांट
फर्टिलाइजेशन यानी गर्भधारण होने के 10 से 12 दिन के बाद जब भ्रूण यूट्रस में इम्प्लांट होने लगता है उस दौरान भी हल्की ब्लीडिंग होती है जिसे पीरियड्स समझा जा सकता है। लेकिन ये मुश्किल से 2 या 3 दिन तक ही रहता है, पीरियड्स की तरह 5 से 7 दिन नहीं।

- वजाइनल इंफेक्शन
कई बार प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को वजाइना में इंफेक्शन भी हो जाता है जिस वजह से हल्का ब्लड स्पॉट नजर आ सकता है। अगर प्रेग्नेंसी के दौरान किसी महिला को यीस्ट इंफेक्शन हो जाए तो उन्हें सर्वाइकल ब्लीडिंग महसूस हो सकती है।

- सेक्शुअल इंटरकोर्स

प्रेग्नेंसी के दूसरे और तीसरे ट्राइमेस्टर में सर्विक्स में सूजन आ जाती है क्योंकि शरीर के इस हिस्से में ब्लड सप्लायी बढ़ जाती है। इस दौरान अगर आप पार्टनर संग इंटिमेट होती हैं या किसी भी तरह की सेक्शुअल गतिविधि करती हैं तो इस वजह से भी हल्की ब्लीडिंग या स्पॉटिंग हो सकती है।

- मिसकैरिज का खतरा
हालांकि प्रेग्नेंसी के दौरान थोड़ी बहुत स्पॉटिंग हो तो घबराने की जरूरत नहीं लेकिन कई बार ब्लीडिंग और स्पॉटिंग बेहद गंभीर भी बन जाती है और वो वजह है मिसकैरिज। आमतौर पर प्रेग्नेंसी के 13 हफ्ते में मिसकैरिज होता है। ऐसे में अगर स्पॉटिंग के साथ हेवी क्रैम्प्स और नॉर्मल पीरियड्स से भी ज्यादा ब्लीडिंग होने लग जाए तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें क्योंकि ये मिसकैरिज का संकेत हो सकता है।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।


प्रेग्नेंसी में जी मिचलाने (nausea) की समस्या मिनटों में दूर कर देंगे ये घरेलू नुस्खे

$
0
0


उल्टी आना, जी मिचलाना, बार-बार उबकाई आना, चक्कर आना... इन लक्षणों की बात करते ही ज्यादातर लोग इसे प्रेग्नेंसी से जोड़कर देखने लगते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रेग्नेंसी के दौरान इस तरह की चीजें होना बेहद कॉमन है और इसे मॉर्निंग सिकनेस या NVP यानी नॉजिया/वॉमिटिंग ऑफ प्रेग्नेंसी के नाम से भी जाना जाता है। करीब-करीब 80 प्रतिशत प्रेग्नेंट महिलाओं में मॉर्निंग सिकनेस होता ही है। इस जी मिचलाने की समस्या की वजह से कई बार हद से ज्यादा कमजोरी और थकान भी महसूस होने लगती है जिस वजह से ऐसा लगता है कि बस दिनभर बिस्तर पर लेटे रहें और कुछ ना करें।

जी मिचलाने की वजहें
- HCG हॉर्मोन जिसे प्रेग्नेंसी हॉर्मोन भी कहते हैं के प्रॉडक्शन की वजह से प्रेग्नेंसी के दौरान उबकाई आती है।
- प्रेग्नेंसी के शुरुआती चरण में एस्ट्रोजेन हॉर्मोन बढ़ जाता है और इस वजह से भी अनइजी फील होने लगता है और हर वक्त जी मिचलाता रहता है।
- अगर आपका पेट पहले से ही बेहद सेंसिटिव है तो प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाले बदलाव की वजह से भी कई बार nausea या मॉर्निंग सिकनेस की समस्या हो जाती है।
- प्रेग्नेंसी के दौरान जब आपके शरीर के अंदर इतने सारे बदलाव होने लगते हैं तो उस वजह से भी हर वक्त थकान और स्ट्रेस महसूस होता है और ये भी उल्टी, उबकाई आना और जी मिचलाने की वजह बन सकता है।

दवा नहीं बिना साइड इफेक्ट वाले घरेलू नुस्खे अपनाएं
ऐसे में अगर किसी नॉर्मल व्यक्ति के साथ ये सारी चीजें हों तो वो कोई दवा खा सकता है लेकिन प्रेग्नेंसी के दौरान दवा का सेवन भी पूरी सावधानी के साथ करना होता है ताकि होने वाले बच्चे को किसी तरह का नुकसान न हो। ऐसे में हम आपको बता रहे हैं ऐसे घरेलू नुस्खों के बारे में जिसके कोई साइड इफेक्ट भी नहीं हैं और जिनका सेवन करने से प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली जी मिचलाने और उबकाई की समस्या भी मिनटों में दूर हो जाएगी।

अदरक है फायदेमंद
जी मिचलाने की समस्या दूर करने की सबसे कॉमन होम रेमेडी है आपके किचन में पाया जाने वाला सबसे कॉमन इन्ग्रीडिएंट अदरक। पेट से जुड़ी किसी भी समस्या, जी मिचलाना, उबकाई आना और चक्कर आने जैसे लक्षणों को दूर करने में मददगार है अदरक। आप चाहें तो अदरक की चाय बनाकर पी सकते हैं, खाने में अदरक को डाल कर उसका सेवन कर सकती हैं या फिर ताजी अदरक के छोटे से टुकड़े को काटकर उसे चबा सकती हैं। वैसे तो अदरक का सेवन प्रेग्नेंसी के दौरान भी सेफ माना जाता है लेकिन किसी भी चीज की अति बुरी हो सकती है इसलिए बहुत ज्यादा अदरक न खाएं।

नींबू से मिलेगी राहत
अगर आपको उल्टी आ रही है या फिर प्रेग्नेंसी की वजह से हर वक्त उल्टी जैसा महसूस हो रहा है, चक्कर आ रहा है तो नींबू आपके लिए रामबाण साबित हो सकता है। नींबू का रिफ्रेशिंग टेस्ट जी मिचलाने की दिक्कत को मिनटों में दूर कर सकता है। नींबू के रस में ऐसे ऐसिड होते हैं जो बाइकार्बोनेट कम्पाउंड बनाते हैं जिससे उल्टी आने की समस्या दूर हो जाती है। आप चाहें तो नींबू को काटकर उसे चाट सकती हैं या फिर एक गिलास गुनगुने पानी में नींबू का रस और चुटकी भर नमक डालकर पी सकती हैं। इन दोनों ही तरीकों से जी मिचलाने की दिक्कत दूर हो जाएगी।

सौंफ और दालचीनी का पाउडर
प्रेग्नेंसी के दौरान जी मिचलाने की दिक्कत और उसके लक्षणों को दूर करने में भारतीय मसाले भी आपकी काफी मदद कर सकते हैं। आप चाहें तो सौंफ का पाउडर, दालचीनी का पाउडर और जीरे के पाउडर का इस्तेमाल कर सकते हैं। इन तीनों मसालों को मिलाकर एक तरह की चाय बना लें और फिर उस चाय को पिएं तो आपको सभी मसालों के फायदे मिलेंगे और उल्टी आना और जी मिचलाना बंद हो जाएगा।

छोटी इलायची चबाएं
छोटी इलायची जिसे हरी इलायची भी कहते हैं को मुंह में रखकर चबाना भी उल्टी आना और जी मिचलाने की समस्या को दूर करने का सबसे असरदार आयुर्वेदिक उपाय है। गर्भवती महिला को जब भी अनइजी महसूस होने लगे तो वे 1 या 2 इलायची को मुंह में रख लें और धीरे-धीरे चबाती रहें। ऐसा करने से उन्हें अच्छा महसूस होगा और वॉमिटिंग सेंसेशन भी कम हो जाएगा।

पेपरमिंट ऑइल है मददगार
ध्यान रखिए इसे खाना या पीना नहीं बल्कि सूंघना है। जी हां, अगर प्रेग्नेंसी के दौरान जी मिचला रहा है तो पेपरमिंट इसेंशल ऑइल की कुछ बूंद को एक रुमाल पर डालें और उसे सूंघें। ऐसा करने से भी उल्टी की समस्या में राहत मिलेगी। इस बारे में हुई स्टडीज की मानें तो पेपरमिंट ऑइल अरोमाथेरपी की मदद से नॉजिया यानी जी मिचलाने की दिक्कत 75 प्रतिशत तक कम हो सकती है। सबसे अच्छी बात ये है कि पेपरमिंट ऑइल को सूंघना पूरी तरह से सेफ है और इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

बच्चे का पेट खराब हो तो दवा के साथ ये नुस्खे भी आएंगे बड़े काम

$
0
0


अगर आपका बच्चा छोटा है यानी 1 से 3 साल के बीच के शिशुओं को पेट से जुड़ी समस्याएं अक्सर परेशान करती हैं। ज्यादा दिक्कत तब होती है जब बच्चे को लूज मोशन्स होने लग जाएं जिसे डायरिया या पेट खराब होना भी कहते हैं। अगर छोटे बच्चों का पेट खराब हो जाए तो शरीर से बहुत ज्यादा पानी निकल जाने की वजह से न सिर्फ उनमें कमजोरी आ जाती है बल्कि बच्चे चिड़चिड़ेपन का भी शिकार हो जाते हैं और बहुत ज्यादा रोने लगते हैं, क्रैन्की हो जाते हैं। कई बार जब बच्चे के दांत निकल रहे होते हैं तब भी बच्चे का पेट खराब हो सकता है और उसे लूज मोशन्स होने लगते हैं। वैसे तो बच्चों में पेट खराब होने की दिक्कत की कई वजहें हो सकती हैं लेकिन इनमें से कुछ सबसे कॉमन वजहें ये हैं...

ये भी पढ़ें: हाथ धोने की आदत हर साल लेती है लाखों बच्चों की जान

पेट खराब होने की ये हैं वजहें
- अगर आपके बच्चे की उम्र 2 साल से कम है तो रोटावायरस से होने वाले इंफेक्शन की वजह से भी उसे लूज मोशन और डायरिया हो सकता है।
- अगर बच्चे को किसी फूड आइटम यानी खाने पीने कि किसी चीज जैसे- दूध, अंडा या मूंगफली से ऐलर्जी है तो इन चीजों को खाने के बाद भी बच्चे का पेट खराब हो सकता है और उसे मोशन्स शुरू हो सकते हैं।
- बच्चे कई बार जब घुटनों के बल चलना शुरू करते हैं तो जमीन पर गिरी चीजें उठाकर सीधे मुंह में रख लेते हैं और इस तरह जर्म्स और गंदी चीजें पेट में जाने की वजह से भी बच्चे को लूज मोशन्स हो सकते हैं।
- अगर किसी गंदी जगह को छूने की वजह से बच्चे के हाथ गंदे हो गए हैं और उन्हीं गंदे हाथों को अगर बच्चा अपने मुंह में रख लेता है तब भी हाथों में लगे कीटाणु शरीर के अंदर चले जाते हैं जिससे पेट खराब और मोशन्स की दिक्कत होने लगती है।
- कई बार बहुत ज्यादा फ्रूट जूस या कोई और लिक्विड चीज पीने की वजह से भी बच्चे का पेट खराब हो सकता है।

लूज मोशन्स की समस्या दूर करने के नुस्खे
अगर बच्चे का पेट खराब है तो जाहिर सी बात है पैरंट होने के नाते आप चिंता करेंगे और बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाकर इलाज करवाएंगे दवा दिलवाएंगे। लेकिन दवा के साथ-साथ आप घर पर भी कुछ घरेलू नुस्खों का इस्तेमाल कर बच्चे को कुछ राहत पहुंचाने की कोशिश कर सकती हैं।

1. ओआरएस का घोल
लूज मोशन होने पर ओआरएस का घोल सबसे ज्यादा कारगर साबित होता है और सदियों से मांएं बच्चे का पेट खराब होने पर इसी का इस्तेमाल करती आ रही हैं। आप चाहें तो केमिस्ट की दुकान से लेकर ओआरएस का घोल खरीद सकती हैं या फिर आप चाहें तो घर पर ही इस सलूशन को बना सकती हैं। इसके लिए आपको 1 लीटर पानी को उबालकर ठंडा करना है। इसमें करीब 5 से 6 चम्मच चीनी और 1 चम्मच नमक डालें और अच्छी तरह से मिक्स कर लें। इस घोल को थोड़ी-थोड़ी देर में बच्चे को पिलाते रहें ताकि उन्हें डिहाइड्रेशन न हो। इस घोल के सेवन से बच्चे के शरीर में हो रहे नमक और फ्लूइड्स की कमी को पूरा किया जा सकता है।

2. चावल का पानी या माड़ और आलू
आप चाहें तो लूज मोशन होने पर बच्चे को चावल का पानी या माड़ जो चावल पकाने के बाद निकलता है, वो भी पिला सकती हैं। इससे भी शरीर में हो रही पानी की कमी को पूरा किया जा सकता है। साथ ही साथ आप चाहें तो बच्चे को स्टार्च से भरपूर चीजें जैसे आलू और चावल भी खिला सकते हैं। उसमें चुटकी भर जीरा पाउडर मिला देने से इन चीजों का स्वाद भी बेहतर हो जाएगा।

3. बच्चे को केला खिलाएं
लूज मोशन्स की वजह से बच्चे पानी के साथ-साथ पोटैशियम भी खोने लगते हैं और शरीर में इसकी कमी को पूरा करना बेहद जरूरी है। साथ ही साथ लूज मोशन्स के समय बच्चे की एनर्जी और स्ट्रेंथ भी बेहद कम हो जाती है। लिहाजा बच्चे को केला खिलाएं। केले में पोटैशियम, जिंक, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम और विटमिन ए और बी6 होता है। केले के सेवन से बच्चे की खोयी एनर्जी को वापस पाया जा सकता है।

4. छाछ और नारियल पानी
जब बात जर्म्स और बैक्टीरिया से लड़ने की आती है तो उसमें घर के बने बटरमिल्क यानी छाछ भी काफी मददगार है। बच्चे को छाछ पिलाने से उनके डाइजेस्टिव सिस्टम को आराम मिलता है। आप चाहें तो इसमें थोड़ा सा काला नमक डालकर बच्चे को पिलाएं। इससे छाछ का टेस्ट भी बेहतर होगा। 8 महीने से ज्यादा के बच्चे को ही छाछ पिलाएं। नारियल पानी भी लूज मोशन और डायरिया होने पर बच्चे को दे सकते हैं। दिन में 2-3 बार बच्चे को नारियल पानी पिलाएं। इससे शरीर में हो रही फ्लूइड्स की कमी को पूरा किया जा सकेगा।

5. दही भी है फायदेमंद
जब बच्चे का पेट खराब हो तो कोई भी पैकेज्ड चीजें उसे न खिलाएं। लिहाजा बाजार से खरीद कर बच्चे को दही खिलाने की बजाए, आप उन्हें घर की जमी हुई दही खिलाएं। दही में मौजूद हेल्दी बैक्टीरिया बच्चे के डाइजेस्टिव सिस्टम के लिए बेहतर होगा और लूज मोशन्स को रोकने में भी मदद करेगा।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

प्रेग्नेंसी में एक्सर्साइज है जरूरी, लेकिन संभलकर वरना बच्चे को हो सकता है नुकसान

$
0
0


मां बनना, अपने बच्चे को 9 महीने तक अपने गर्भ में पालना, जन्म से लेने से पहले ही बच्चे के साथ एक बॉन्ड बनाना और उसकी हर जरूरत का ख्याल रखना... ये सारी बातें सिर्फ शब्द नहीं है बल्कि एक ऐसा अहसास जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। गर्भावस्था के उन 9 महीनों में महिला के शरीर के अंदर कई तरह के बदलाव होते हैं जो शारीरिक के साथ-साथ मानसिक बदलाव भी है। जैसे ही आप गर्भधारण करती हैं आपका शरीर हॉर्मोन्स रिलीज करना शुरू कर देता है ताकि आप डिलिवरी के लिए रेडी हो सकें। पेट की मांसपेशियां बढ़ने लगती हैं, पेल्विक फ्लोर मसल्स पर दबाव बढ़ता है और कमजोरी महसूस होने लगती है।

प्रेग्नेंसी में एक्सर्साइज करने के हैं कई फायदे
हमारे देश में जैसे ही कोई महिला प्रेग्नेंट होती है घरवाले उसका पूरा ध्यान रखने लगते हैं और उसे कोई काम करने नहीं देते, हर वक्त बस आराम करने की सलाह देते हैं। प्रेग्नेंसी में आराम करना जरूरी है लेकिन आपके शरीर का थोड़ा बहुत ऐक्टिव रहना भी जरूरी है और एक्सर्साइज के जरिए आप शरीर को बेहतर तरीके से ऐक्टिव रख सकती हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान एक्सर्साइज करने के कई फायदे हैं- आपका शरीर लेबर और चाइल्ड बर्थ के लिए तैयार हो जाता है, आपका मूड बेहतर रहता है, डिप्रेशन या ऐंग्जाइटी फील नहीं होती आदि। लेकिन चूंकि आप प्रेग्नेंट हैं लिहाजा किसी भी तरह की एक्सर्साइज आप नहीं कर सकतीं। आपको भी कुछ जरूरी सावधानियां बरतनी होगी।

भूल से भी न करें ये एक्सर्साइज
कॉन्टैक्ट स्पोर्ट्स

फुटबॉल, क्रिकेट, हॉकी, रग्बी, मार्शल आर्ट्स जैसी स्पोर्ट्स ऐक्टिविटीज को कॉन्टैक्ट स्पोर्ट्स कहा जाता है। इन गेम्स को इस तरह से खेला जाता है कि इसमें आपके पेट में चोट लगने का खतरा बहुत ज्यादा रहता है। लिहाजा प्रेग्नेंसी के दौरान भूल से भी ऐसे गेम्स न खेलें और ना ही उस जगह पर जाएं जहां ये गेम्स खेले जा रहे हों। इसके साथ-साथ साइक्लिंग और हॉर्स राइडिंग जैसी चीजों से भी प्रेग्नेंसी के दौरान दूर ही रहना बेहतर है।

वेट लिफ्टिंग ना करें
प्रेग्नेंसी के दौरान किसी भी तरह की वेट लिफ्टिंग भी ना करें। फिर चाहे वजन कितना ही कम क्यों ना हो।

स्क्वॉट्स और लंजेज से करें परहेज
बहुत ज्यादा डीप स्क्वॉट्स और लंजेज भी प्रेग्नेंसी के दौरान बिलकुल न करें क्योंकि प्रेग्नेंसी के दौरान पहले ही आपके पेल्विस और आसपास के लिगामेंट्स पर बहुत ज्यादा प्रेशर बना रहता है। ऐसे में इस तरह की एक्सर्साइज करने से पेल्विस मसल्स में प्रेशर बढ़ेगा जिससे दर्द बढ़ सकता है।

पीठ के बल एक्सर्साइज न करें
प्रेग्नेंसी के 16 हफ्ते हो जाने के बाद पीठ के बल लेटकर एक्सर्साइज करने से लो ब्लड प्रेशर और चक्कर आने की समस्या हो सकती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बच्चे के वेट की वजह से शरीर की मुख्य रक्तवाहिनी पर प्रेशर पड़ने लगता है और इस वजह से होने वाली मां और बच्चा दोनों के हार्ट तक ब्लड फ्लो में कमी आ जाती है।

हाई इम्पैक्ट योग और ऐरॉबिक्स से बचें
वैसे तो योग, प्रेग्नेंसी में फायदेमंद है लेकिन सिर्फ कुछ ही आसन ऐसे हैं जिन्हें आप प्रेग्नेंसी में कर सकती हैं। बहुत ज्यादा मुश्किल योगासन, पिलाटेज और हाई इम्पैक्ट ऐरोबिक्स या स्टेप ऐरोबिक्स जैसे एक्सर्साइजेज बिलकुल न करें। इससे होने वाले बच्चे के साथ-साथ मां को भी नुकसान हो सकता है।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

प्रेग्नेंसी में भूल से भी न पिएं शराब, बच्चे के ब्रेन पर होगा बुरा असर

$
0
0

प्रेग्नेंसी के दौरान सिगरेट-शराब का सेवन कितना हानिकारक है ये तो हम सब जानते हैं। लेकिन कई बार बहुत सी महिलाएं जो प्रेग्नेंट होने से पहले सिगरेट या शराब पीती थीं वह अपनी urge को कंट्रोल नहीं कर पातीं और उन्हें एक लगता है कि थोड़े ऐल्कॉहॉल या स्मोकिंग से क्या फर्क पड़ेगा? हम आपको बता दें कि अगर आपकी या आपकी किसी दोस्त या रिलेटिव जो प्रेग्नेंट हैं और उनकी सोच ऐसी है तो आप उन्हें प्रेग्नेंसी में शराब पीने के खतरों के बारे में अवगत जरूर कराएं।

शराब का होने वाले बच्चे पर होगा बुरा असर
प्रेग्नेंसी के दौरान अगर होने वाली मां ऐल्कॉहॉल यानी शराब का सेवन करती है तो उसके गर्भ में पल रहे बच्चे का जन्म के वक्त वजन काफी कम हो जाता है, बच्चे के ब्रेन पर इसका बुरा असर पड़ता है और बच्चे के संज्ञानात्मक क्रियाएं भी प्रभावित होती हैं। ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि यूके की ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी ने एक रिसर्च की और ये जानने की कोशिश की अगर कोई गर्भवती महिला शराब का सेवन करती है तो उसका होने वाले बच्चे पर क्या असर पड़ता है। ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं की टीम ने प्रेग्नेंसी के दौरान ड्रिंकिंग करने से जुड़ी 23 स्टडीज का विश्लेषण किया और पुख्ता सबूत पाए कि प्रेग्नेंसी में शराब का सेवन करने से होने वाले बच्चे का जन्म के वक्त वजन कम हो जाता है और उसकी संज्ञानात्मक यानी ज्ञान संबंधी क्रियाएं प्रभावित होती हैं।

ये भी पढ़ें प्रेग्नेंसी में एक्सर्साइज है जरूरी लेकिन सभंलकर

तीनों ट्राइमेस्टर में न करें शराब का सेवन
अनुसंधानकर्ताओं की मानें तो यह पहली बार है जब अलग-अलग स्टडीज के इतने सारे नतीजों को मिलाकर एक स्टडी डिजाइन की गई है जिसमें तुलनात्मक रूप से प्रेग्नेंसी के दौरान ऐल्कॉहॉल का सेवन करने से क्या होता है इस बारे में बताया गया है। स्टडी में शामिल वैज्ञानिकों ने कहा कि महिलाओं को इस बात को पूरी गंभीरता से लेना चाहिए और प्रेग्नेंसी के तीनों ट्राइमेस्टर में से किसी में भी ऐल्कॉहॉल का सेवन नहीं करना चाहिए।

जन्म के वक्त वजन होता है कम
इतना ही नहीं, स्टडी में ये बात भी कही गई है कि अगर कोई महिला गर्भावस्था के दौरान ऐल्कॉहॉल का सेवन करती है तो इससे जन्म के वक्त तो बच्चे का वजन कम होता ही लेकिन बाद की उम्र में भी मुश्किलें हो सकती हैं और उन्हें एजुकेशन यानी पढ़ाई लिखाई में दिक्कत आती है। ये बातें इसलिए भी जरूरी हैं क्योंकि ऐल्कॉहॉल इंडस्ट्री प्रेग्नेंसी में ड्रिंकिंग के सेहत पर क्या नकारात्मक असर होते हैं इसको लेकर बेहद कन्फ्यूजिंग इन्फॉर्मेशन प्रमोट कर रही है।

खून से होकर बच्चे तक पहुंच जाता है ऐल्कॉहॉल
वैज्ञानिकों की मानें तो कोई सेफ लेवल या सेफ लिमिट नहीं है इसलिए प्रेग्नेंसी के दौरान पूरी तरह से ऐल्कॉहॉल से दूर ही रहना चाहिए। जब कोई महिला शराब पीती है तो ऐल्कॉहॉल खून से पास होकर प्लैसेन्टा तक पहुंच जाता है और फिर होने वाले बच्चे तक पहुंचकर उसे नुकसान पहुंचाता है। लिहाजा सबसे सेफ अप्रोच यही है कि आप प्रेग्नेंट होते ही पूरी तरह से ऐल्कॉहॉल का सेवन बंद कर दें।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

बॉलिवुड के इन 10 स्टार किड्स के नाम का क्या है मतलब, यहां जानें

$
0
0


बॉलिवुड सिलेब्रिटीज हमेशा ही चर्चा में रहते हैं। उनकी लाइफस्टाइल, उनका रहन-सहन, वो क्या पहनते हैं, क्या खाते हैं, वकेशन मनाने कहां जाते हैं, ये सारी चीजें चर्चा में रहती हैं। इतना ही नहीं जब सिलेब्रिटीज की शादी हो जाती है तो उसके बाद भी उनके पार्टनर और फिर उनके बच्चे यानी स्टार किड्स भी मीडिया की सुर्खियां बटोरते हैं। फिर चाहे सैफ और करीना का बेटा तैूमर हो या फिर ऐश्वर्या और अभिषेक की बेटी आराध्या या फिर शाहरुख खान का बेटा अबराम और बेटी सुहाना... ये सारे सिलेब्रिटी स्टार किड्स हमेशा ही चर्चा में रहते हैं। कभी अपनी क्यूटनेस की वजह से तो कभी अपने स्टाइलिश लुक्स की वजह से तो कभी नई-नई अदाओं की वजह से...

नाम रखने से पहले करते हैं काफी रिसर्च
एक तरफ जहां कुछ सिलेब्रिटीज अपने बच्चे को मीडिया और पब्लिक के सामने लाने से कतराते नहीं हैं, बच्चों को मिल रहे मीडिया अटेंशन को इंजॉय करते हैं जैसे करीना कपूर खान। वहीं कुछ सिलेब्रिटीज ऐसे भी हैं जो अपने बच्चों को मीडिया के कैमरों से बचाकर रखना चाहते हैं जैसे अक्षय कुमार। लेकिन एक चीज जो फिर भी इन बच्चों को स्पॉटलाइट में ले ही आती है वो है उन बच्चों का नाम। सिर्फ सिलेब्रिटीज ही नहीं बल्कि अब तो नॉर्मल कपल्स भी अपने बच्चे का नाम रखने से पहले काफी रिसर्च करते हैं। नाम का मतलब क्या है, नाम से लोगों का अटेंशन ग्रैब होगा या नहीं, नाम स्टाइलिश है या नहीं, बहुत ज्यादा ओल्ड फैशन्ड नाम तो नहीं है, बच्चे की पर्सनैलिटी को सूट करेगा या नहीं... इस तरह के कई पॉइंट्स को ध्यान में रखकर सिलेब्रिटीज अपने बच्चों के नाम रखते हैं।

आज हम आपको बता रहे हैं बॉलिवुड के 10 सबसे फेमस सिलेब्रिटी स्टार किड्स के नाम का क्या है मतलब...
1. आराध्या बच्चन
अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय बच्चन की बेटी और सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की पोती आराध्या बच्चन। आराध्या के नाम के 2 मतलब हैं। पहला- जो आराधना करने लायक है, जिसकी पूजा की जा सकती है और दूसरा मतलब है- सबसे पहला (द फर्स्ट वन)।

2. नितारा कुमार

बॉलिवुड ऐक्टर अक्षय कुमार और ट्विकंल खन्ना अपनी बेटी नितारा को अक्सर मीडिया की नजरों से बचाकर रखते हैं। ये नाम सुनकर आप भी यही सोच रहे होंगे ना कि आखिर इस नाम का क्या मतलब हुआ तो जवाब ये है कि नितारा का मतलब है जिसकी जड़े बेहद गहरी हों, जो जमीन से जुड़ा हो, डीप रूटेड हो।

3. मीशा कपूर
शाहिद कपूर और मीरा राजपूत कपूर की बेटी मीशा का नाम शाहिद और मीरा के नाम को जोड़कर बनाया गया था और मीशा का अर्थ है जो भगवान की तरह हो या फिर भगवान का दिया हुआ तोहफा। है ना कितना प्यारा नाम। बेटियां तो होती ही हैं भगवान का दिया गिफ्ट।

4. रेने सेन
सुष्मिता सेन सिंगल मदर हैं और उन्होंने एक नहीं बल्कि 2 बेटियों को गोद ले रखा है। सुष्मिता ने अपनी बड़ी बेटी का नाम रखा है रेने जिसका अर्थ होता है रीबॉर्न यानी दोबारा जन्म लेना।

5. न्यासा देवगन
बॉलिवुड के सबसे फेमस कपल्स में से एक अजय देवगन और काजोल ने अपनी बेटी का नाम रखा न्यासा। ये नाम शायद आपने पहले कभी सुना भी नहीं होगा। इस यूनीक नाम का मतलब होता है- लक्ष्य या फिर नई शुरुआत।

6. वियान कुंद्रा

शिल्पा शेट्टी और उनके पति राज कुंद्रा का एक बेटा है जिसका नाम उन्होंने वियान रखा है। वियान का अर्थ होता है फुल ऑफ लाइफ यानी जो अपनी लाइफ को खुलकर इंजॉय करे, हमेशा खुश रहे और दूसरों को भी खुश रखने की कोशिश करे।

7. इनाया खेमू
सैफ अली खान की बहन सोहा अली खान और उनके पति कुणाल खेमू ने अपनी बेटी का नाम रखा इनाया नौमी खेमू। इनाया, कुराण से लिया गया शब्द है जिसका अर्थ होता है मदद करना, केयर करना और प्रोटेक्ट करके रखना।

8. अबराम खान

शाहरुख खान ने अपने तीसरे और सबसे छोटे बेटे का नाम रखा अबराम। अबराम हीब्रू ओरिजिन का शब्द है जिसका मतलब होता है असाधारण या उत्कृष्ट।

9. सुहाना खान
सुहाना खान को कौन नहीं जानता। शाहरुख खान और गौरी की बेटी सुहाना, फिल्म इंड्रस्टी में आने से पहले ही अपनी स्टाइल को लेकर सुहाना काफी चर्चा में रहती हैं। सुहाना के नाम का मतलब है प्योर और ब्राइट यानी शुद्ध और चमकदार।

10. अरहान खान
मलाइका अरोड़ा के बेटे का नाम अरहान खान है और अरहान का मतलब होता है शासन करने वाला राजा।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

पीरियड्स के बारे में बेटियों को ही नहीं बेटों को भी बताएं, दूर होगा उनका भ्रम

$
0
0


अगर आप एक मां हैं और आपकी बेटी बहुत जल्द उस उम्र में आने वाली है जब उसके पीरियड्स शुरू हो जाएंगे तो एक जिम्मेदार मां होने के नाते यह आपका फर्ज बनता है कि आप अपने बेटी को पीरियड्स के बारे में पहले से ही बताएं और उसे इन सबके बारे में तैयार करके रखें ताकि आपकी लाडली का पहला पीरियड्स उसके लिए किसी तरह का ट्रॉमा न बन जाए। आपको बता दें कि आज हमारे देश में भले ही इंटरनेट की सुविधा गांव-गांव तक पहुंच गई हो और लोग हर चीज को ऑनलाइन सर्च कर लेते हों और तरक्की दिख रही हो लेकिन आज भी हर महीने महिलाओं को होने वाले इस पीरियड्स या माहवारी को टैबू समझा जाता है और इस बारे में बहुत कम बात की जाती है।

70% मांएं बेटियों से नहीं करतीं पीरियड्स पर बात
आकंड़ों की मानें तो आज भी करीब 70 प्रतिशत मांएं अपनी बेटियों से पीरियड्स के बारे में बात नहीं करतीं। बेटी को उसके पहले पीरियड्स के बारे में कुछ नहीं बतातीं जिस वजह से जब लड़की का सामना पहली बार इतने सारे खून से होता है तो वह डर जाती है और उसे मेन्स्ट्रुअल हाइजीन के बारे में भी कुछ पता नहीं होता। ऐसे में आज हम हर मां से एक सवाल करना चाहते हैं कि क्या आपको अपना पहला पीरियड्स याद है? अगर हां तो आपको ये भी याद होगा कि उस दौरान आपको कितनी असहजता महसूस हुई थी, आप किसी से बात करना चाहतीं थीं इस बारे में लेकिन नहीं कर पायीं। लिहाजा आपकी बेटी के साथ ऐसा न हो, पीरियड्स की वजह से वह किसी तरह के मेंटल ट्रॉमा से न गुजरे इसलिए बेहद जरूरी है कि आप बेटी से पीरियड्स के बारे में बात करें।

ये भी पढ़ें सामान्य नहीं है पीरियड्स में होने वाला दर्द, हो सकती है ये बीमारी

इन पॉइंट्स और सवालों के जरिए पीरियड्स पर बढ़ाएं बेटी की जानकारी
1. आखिर क्यों होते हैं पीरियड्स?

बेटी को अच्छी तरह से समझाएं कि लड़कियों का शरीर लड़कों से अलग होता है। लड़कियों के शरीर में एक ओवरी होती है जो ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन हॉर्मोन रिलीज करती है। ये हॉर्मोन गर्भाशय की दीवार को खून के साथ बढ़ाते हैं जिससे अगर लड़की प्रेग्नेंट हो तो बच्चा इसमें सुरक्षित रहे। लेकिन जब ओवरी से निकलने वाले एग को स्पर्म नहीं मिलता तो वो टूट कर बाहर निकल जाता है। उसके साथ ही गर्भाशय की मोटी दीवार भी खून के रूप में बाहर निकलती है। ऐसा महीने में एक बार होता है, इसलिए लड़कियों को हर महीने पीरियड्स आते हैं। इस पूरे साइकल को मेन्स्ट्रुएशन कहते हैं।

2. किस उम्र में शुरू होते हैं पीरियड्स?
अपनी बेटी को समझाएं कि आमतौर पर 10 से 12 साल की उम्र के बीच लड़कियों के पीरियड्स शुरू होते हैं। ऐसे में अगर आपकी बेटी की उम्र इसके आसपास है तो आप उसे सैनिटरी पैड साथ में कैरी करने और पीरियड्स शुरू होने पर आपको बताने के लिए कहें। बेटी को इस बात का भरोसा दिलाएं कि आप उनकी दोस्त हैं और उन्हें अपनी हर छोटी से छोटी बात भी आपसे शेयर करनी है।

3. कितने दिन चलते हैं पीरियड्स?
कुछ लड़कियों और बच्चियों को शुरूआती सालों में पीरियड्स रेग्युलर नहीं होते। लेकिन 2-3 साल बाद हर महीने नियमित रूप से आने लगते हैं। अगर आपकी बेटी के पीरियड्स रेग्युलर नहीं हैं तो डॉक्टर से संपर्क करें। जहां तक कितने दिनों तक चलने की बात है तो आमतौर पर हर महीने आने वाला पीरियड्स 4 से 5 दिन तक रहता है। लेकिन हर किसी के शरीर के हिसाब से दिनों की संख्या अलग-अलग हो सकती है।

4. शरीर में हो रहे बदलाव के बारे में जानकारी दें
लड़कियों में प्यूबर्टी यानी प्रौढ़ता की शुरुआत से काफी पहले ही लड़कियों के शरीर में बदलाव आने शुरू हो जाते हैं और इसी का एक बदलाव का जरूरी हिस्सा है पीरियड्स। बेटी को बताएं कि पीरियड्स कोई बीमारी नहीं है जो हर महीने 4-5 दिन के लिए उसे बीमार कर देगी। यह शरीर में हो रहा बदलाव है और इससे रोजमर्रा के कामों पर कोई फर्क नहीं पड़ता। बच्ची कहीं अचानक ब्लड देखकर घबरा न जाए इसलिए उसका यह डर खत्म करना जरूरी है कि इससे शरीर में किसी तरह की कमजोरी नहीं होती।

बेटों को भी बताएं पीरियड्स के बारे में

टीवी में सैनिटरी पैड का ऐड देखकर अक्सर बच्चे पूछते हैं कि ये क्या है? ऐसे में इस सवाल को टालने, टॉपिक बदलने या बच्चे को डांटने की बजाए अच्छी तरह से समझाएं कि ये फीमेल्स के इस्तेमाल करने की चीज है और उन्हें इसकी जरूरत क्यों पड़ती है। अक्सर बेटों के मन में भी पीरियड्स को लेकर भ्रम और गलत धारणाएं होती हैं लिहाजा बेटों से भी पीरियड्स के बारे में बात करने से हिचकिचाएं नहीं। बेटा अगर सैनिटरी पैड के बारे में कुछ पूछे तो उसे समझाएं कि ये औरतों के इस्तेमाल की चीज है जो हर महीने शरीर से निकल रहे खून को कपड़ों में लगने से रोकता है। बेटों को समझाएं कि जब सही समय आता है तो इसी खून से औरतों के भीतर बच्चा बनता है। पीरियड्स के दौरान लड़कियों और महिलाओं को होने वाली तकलीफ के बारे में भी बेटों को बताएं ताकि वे सेंसिटिव बन सकें।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।

हेल्दी और हैपी बेबी चाहिए तो प्रेग्नेंसी में बिना डरे जरूर खाएं ये 10 फल

$
0
0


किसी भी औरत के लिए मां बनना दुनिया का सबसे खूबसूरत अहसास होता है और इस जर्नी की शुरुआत होती है प्रेग्नेंसी से। इस दौरान एक तरफ जहां औरत बच्चे के आने की खबर से बेहद खुश होती है। वहीं कहीं ना कहीं उसके मन में बेचैनी और डर भी होता है कि 9 महीने के इस सफर के दौरान सबकुछ ठीक रहेगा या नहीं और साथ ही साथ शरीर के अंदर हो रहे इतने सारे बदलावों की वजह से ढेरों हेल्थ इशूज भी होते हैं। कुल मिलाकर हम ऐसा कह सकते हैं कि प्रेग्नेंसी एक ऐसा सफर है जिसमें सुख और स्ट्रेस दोनों एक साथ मिलता है।

प्रेग्नेंसी में फ्रूट्स खाना है फायदेमंद
प्रेग्नेंसी के दौरान फ्रेश फ्रूट्स खाना बेहद जरूरी है क्योंकि फल, होने वाली मां और बच्चा दोनों को हेल्दी बनाए रखने में मदद करते हैं। ताजे फलों में ढेर सारे विटमिन्स और न्यूट्रिएंट्स होते हैं और साथ ही फलों में फाइबर की भी अच्छी मात्रा होती है। ऐसे में प्रेग्नेंसी के दौरान अगर स्नैक्स खाने का मन हो तो कुछ भी अनहेल्दी खाने की बजाए फ्रूट्स खाना बेस्ट होगा क्योंकि फ्रूट्स एक तरफ जहां आपकी शुगर क्रेविंग्स को शांत करेंगे वहीं आपको ढेर सारा विटमिन्स भी मिल जाएगा। ऐसे में हम आपको बता रहे हैं उन 10 फलों के बारे में जिन्हें आपको प्रेग्नेंसी में जरूर खाना चाहिए...

कीवी- ये फल गर्भवस्था के दौरान काफी अच्छा माना जाता है। इसमें विटमिन सी, ई, ए, पोटैशियम, फॉलिक ऐसिड होता है। इस फल को खाने से खांसी और घबराहट की समस्या दूर होती है।

केला- पोटैशियम, मैग्नीशियम और फॉलेट से भरपूर केला बच्चे को हर तरह के जन्मजात दोष से बचाता है और गर्भवती स्त्री के जी मिचलाने की समस्या को दूर करता है।

चीकू- प्रेग्नेंसी के दौरान चक्कर आना और जी मिचलाने की प्रॉब्लम्स से बचाने में मदद करता है चीकू। ये फल पेट से जुड़ी बीमारियां जैसे दस्त और पेचिश की समस्या को भी दूर करता है।

ऐप्रिकॉट्स-
विटमिन ए, सी, ई, कैल्शियम, आयरन, पोटैशियम और फॉस्फॉरस से भरपूर ऐप्रिकॉट्स अनीमिया से बचाते हैं और बच्चे के ग्रोथ में मदद करते हैं।

सेब- नॉर्मल हेल्थ की ही तरह प्रेग्नेंसी में भी सेब काफी फायदेमंद है। विटमिन ए, सी और फाइबर से भरपूर सेब बच्चे में किसी भी तरह की ऐलर्जी को होने से रोकता है।

ऑरेंज- विटमिन सी, फॉलेट और पानी से भरपूर संतरा आयरन को सोखने में मदद करता है और फॉलेट होने वाले बच्चे में किसी भी तरह की जन्मजात विषमता को दूर करता है।

आम- विटमिन ए और सी से भरपूर 1 कप कटा हुआ आम, आपकी हर दिन की विटमिन सी की जरूरत को 100 फीसदी पूरा करता है। साथ ही बच्चे की इम्यूनिटी स्ट्रॉन्ग बनाता है।

नाशपाती- फाइबर, फॉलेट और पोटैशियम से भरपूर नाशपाती प्रेग्नेंसी में कब्ज की दिक्कत नहीं होने देता और बच्चे की हार्ट हेल्थ का ख्याल रखता है।

अनार- विटमिन के, कैल्शियम, प्रोटीन, आयरन से भरपूर अनार एनर्जी का बेहतरीन सोर्स है। साथ ही यह हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद करता है।

ऐवकाडो- विटमिन बी, कॉपर, फाइबर से भरपूर ऐवकाडो बच्चे की स्किन और ब्रेन टीशूज के डिवेलपमेंट में मदद करता है और प्रेग्नेंट महिला के पैरों में होने वाले क्रैम्प्स की दिक्कत को दूर करता है।

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।






Latest Images